नैतिक जीवन जीने का सार यही है कि आप गलत काम करने के बहाने न खोजें | एक बहाना तो यह है कि सफलता के लिए आपको बेईमानी करनी पड़ती है क्योंकि बाकी सभी बेईमान हैं और वे आपसे जल्दी आगे निकल जाते हैं | और अगर आप उनकी तरह न हों तो आप पीछे रह जायेंगे |
समझें कि इस तरह के विचार आपके मन की कमजोरी है | इस ध्यान साधना से आपका मन इतना मजबूत हो जायेगा कि आपको कभी अनैतिक काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी | बल्कि अगर आप डरते हैं कि गलत तरीके इस्तमाल न करने की वजह से आप असफल होंगे, तो यही डर आपकी असफलता का कारण बन जायेगा | परन्तु एक सुदृढ़ मन आपको सफलता दिलाएगा | तो आपको अपने मन को मजबूत बनाना है न कि किसी बहाने कमजोर |
जैसे जैसे आप आगे बढ़ेंगे आपको समझेगा कि जिन लोगों ने बेईमानी से नाम, शोहरत, पद या पैसा कमाया है और एक सफल जिंदगी जीते हुए प्रतीत होते हैं, वे अन्दर से व्याकुल और दुखी ही रहते हैं | इस पथ पर आगे जा कर आपको एहसास होगा कि ऐसे लोगों को ना दिन में चैन होता है ना रात में नींद | उनकी सफलता ने उन्हे क्या दिया ? पैसा, पद, शोहरत और नाम सब व्यर्थ हैं अगर वह आपको सुख शांति नहीं दे पाते |
दूसरी तरफ एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास बहुत पैसा या शोहरत नहीं है पर वह संतुष्ट है और उसका दिल करुणा से भरा है तो वह सही मायने में महान है और एक सुखी जिंदगी जी रहा है | इसलिए जिंदगी में सफल होने के लिए गलत रास्ते का चुनाव न करें | यही कारण है कि आप इतनी कम उम्र में ध्यान करना सीख रहे हैं ताकि किसी कीमत पर आपको गलत रास्ता न चुनना पड़े | सही लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमेशा सही रास्ता ही चुनें |
किसी भी परिस्थिति में यह गलत है | झूठ का न्यायीकरण करने की हमें आदत पड जाती है, चाहे वह नैतिक रूप से सही हो या नहीं | पहली बात तो यह है कि, हम कैसे निश्चित कर सकते हैं कि जो कारण हम दे रहें हैं वह सही है या नहीं | विश्लेषण करने और समझने की हर एक की एक सीमा होती है, जो आपकी भी है | आप दोषहीन नहीं हैं और हर बार यह समझना कठिन है कि जिस कारण से झूठ बोला गया वह सही है या नहीं | और अगर आप दावे के साथ कह सकते हैं कि आपने उचित कारण से झूठ बोला, तो भी किसी और कारण से, जिसे आप उचित समझते हैं, आप फिर झूठ बोलने पर मजबूर होंगे | अगर इस तरह झूठ बोलते रहे तो आपको झूठ बोलने और उसका न्यायीकरण करने की आदत पड जाएगी, और आपको यह लगने लगेगा कि यह छोटे छोटे झूठ कोई मायने नहीं रखते | कभी इस आदत में मत पड़ना | चाहे कोई भी लालच हो या कितना ही सही लगे, हमेशा सच बोलना |
कभी कभी किसी को चोट पहुँचाने के डर से आप झूठ बोलते हैं, उदाहरणत: आपके शिक्षक पूछते हैं कि कक्षा में किसने बदमाशी की | आप जानते हैं कि वह आपका दोस्त ही है, पर आप नहीं चाहते कि उसे सज़ा मिले | तो आप सफ़ेद झूठ बोलते हैं कि आपका दोस्त निर्दोष है | समझें कि इस तरह ऊपरी सतह पर ऐसा लगेगा कि आपके झूठ ने आपके दोस्त को बचा लिया | असल में आपने उसे बढ़ावा दे कर उसका बहुत नुकसान किया | सज़ा से बच जाने के कारण वो बार बार बदमाशी करने के लिए प्रवृत्त होगा | तो आपके एक झूठ ने आपके दोस्त के लिए बदमाशी और दुःख के द्वार खोल दिए | अगर आपने सच बोला होता और अगर शिक्षक ने उसे सही सज़ा दी होती, तो वह भविष्य में गलत रास्ते पड़ने से बच जाता |
चुप रहने में कोई नुकसान नहीं है, अगर आप कोई टिपण्णी नहीं करना चाहते | अगर आपको लगता है कि आप कुछ गलत कह जायेंगे तो नम्रता और दृढ़ता से आप चुप रह सकते हैं | आपके लिए सच्चाई यही है कि आप कुछ कहना नहीं चाहते तो आपने कुछ गलत नहीं किया | पर झूठ बोल कर आप बचायें तो, उसका फायदा होने की बजाय ज्यादा नुकसान हो सकता है | उसे ही नहीं आपको भी, क्योंकि झूठ बोलने की आदत जो पड सकती है |
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