निम्नलिखित प्रश्न और उत्तर भारत से श्री. एस. एन. गोयन्का जी के साथ हुए सत्र से सारांशित किए गए हैं
हमारी सारी कोशिशें मन को शांत करने की ओर हैं | हमें अनुभव हैं कि मन कितना बातूनी है | अगर हम चाहें कि वह बस सांस को जानता रहे तो भी कुछ सांसे जानने के बाद ही वह वापस अपनी पुरानी अंतहीन विचार करने की आदत पर चला जाता है | हम चाहते हैं कि मन शांत हो जाए और वापस सांस की जानकारी पर लग जाए, पर हमारी सारी कोशिशों के बावजूद वह शांत नहीं होता | इसपर अगर आप दूसरे साधकों से बात करने लगें तो उसे सोचने के लिए खाद्य मिल जाता है | ध्यान के समय भी मन उसी बात के बारे में सोचता रहेगा | इससे आप की साधना कमजोर होगी | दूसरा व्यक्ति जिस से आपने बात की वह भी ठीक तरह से काम नहीं कर पायेगा | बिना वजह और बिना रुके बात करना हमारी आदत है | हमारी बातचीत हमेशा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए | अभी के लिए हमारा काम है ध्यान करना, जो हम पूरी तरह मौन रह कर ही कर सकते हैं |
हम सांस को जानते हुए अपने मन को जानने लगते हैं | मन को जानते हुए हम उसे सुधार सकते हैं | मन और सांस का गहरा सम्बन्ध है | यह आप समझेंगे जैसे जैसे आप इस ध्यानपथ पर आगे बढ़ेंगे | सांस को जानते समय कभी क्रोध भरे विचार आएँ तो आप देखेंगे कि सांस की स्वाभाविकता भंग हो गयी और वह तेज और भारी हो गयी | और जैसे ही क्रोध के विचार समाप्त होते हैं तो सांस फिर से स्वाभाविक गति से चलने लगती है | इससे पता चलता है कि मन की विकृतियां हमारी श्वास प्रक्रिया से कैसे जुड़ी हुई हैं | जैसे जैसे आप ध्यान में आगे बढ़ेंगे आप यह खूब समझने लगेंगे | पर आप यह तभी समझेंगे जब आप शुद्ध सांस के साथ काम करेंगे | अगर आप सांस के साथ कुछ भी जोड़ते हैं तो आप यह समझ नहीं पाएंगे | इसलिए हम शुद्ध सांस के साथ काम करते हैं | सांस शरीर ही नहीं बल्कि मन के साथ भी सम्बन्ध रखती है | जब हम सांस लेते हैं, तो फेफड़े हवा के साथ फूलते हैं और जब हम सांस बाहर फेंकते हैं, फेफड़े ढीले होते हैं | इस तरह सांस शरीर से सम्बंधित है | और जैसा कि अभी समझाया कि जब भी मन में कोई विकार जागता है तो सांस अपनी स्वाभाविकता खो देती है | इस तरह सांस मन से जुड़ी है |
निश्चित रूप से, वर्तमान में रहना पर भविष्य के बारे में बिल्कुल नहीं सोचना, गलत है | सांस को जानते हुए आपको मन की गतिविधियों के बारे में भी जानकारी होती है | आप जानते हैं कि भूतकाल और भविष्यकाल के बारे में सोचते रहना मन की पुरानी आदत है | मन वर्तमान में रह कर सांस देखने का काम नहीं करना चाहता | जब भी मन भूत या भविष्य में लोटपोट लगाता है मन की उर्जा कम हो जाती है और वह पूरी शक्ति के साथ वर्तमान में सांस देखने के काम पर नहीं लग पाता | और जब सही क्रिया करने का समय आता है तो मन सारी उर्जा समाप्त कर चुका होता है | इसलिए मन को दृढ़ता से वर्तमान में स्थिर रख अपने काम के बारे में विचार या योग्य योजना बना सकते हैं | अपना लक्ष्य निश्चित करें और एक एक कदम बढ़ाते हुए उसकी ओर चलते रहें | एक बार लक्ष्य निश्चित हो गया तो फिर उस के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं | इस तरह आपका हर कदम वर्तमान में होगा | पर हर कदम के बारे में जागरूक रहें | इससे गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी |
आप यह सोचते होंगे कि भविष्य के बारे में योजना बनाए बिना हम कैसे जी सकते हैं | हमारे पास सीमित उर्जा है जिसका उपयोग समझदारी से करना चाहिए | उतनी ही उर्जा खर्च करें जितनी भविष्य की योजना बनाने के लिए जरूरी है | हम व्यर्थ ही अपनी सारी उर्जा भविष्य के बारे में निरर्थक और कष्टप्रद विचारों में खर्च कर देते हैं | “ये हो सकता है या नहीं, मुझे यह करना चाहिए या नहीं ?” अरे भाई, इन सब बातों में तभी उलझें यदि जरूरी हो | अभी तो आपका काम है सांस को जानना, ताकि आप वर्तमान में रहना सीख सकें | अगर हम वर्तमान में स्थित रहने की आदत बना लें तो हम अगला कदम भी सही तरीके से उठा सकते हैं | इस प्रकार, मन की इस आदत को स्थापित करने के लिए, हम वर्तमान में रहने पर जोर देते हैं |
महत्वाकांक्षी होना बुरी बात नहीं है | हम अपने जीवन का लक्ष्य तय करते हैं | उदाहरणार्थ, हम अपनी कोई महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए पढाई करते हैं या अपनी एकाग्रता बढ़ाने के लिए ध्यान करते हैं | पर अगर हम अपने लक्ष्य के प्रति आसक्त हो जाएँ और काम करने की बजाय सिर्फ व्यर्थ चिंता में समय बिताएं तो महत्वाकांक्षी होना व्यर्थ है | महत्वाकांक्षी होने का क्या मतलब है अगर आपकी महत्वाकांक्षा आपको सही कदम उठाने नहीं देती ? अपना लक्ष्य निश्चित करें और उसकी ओर बढ़ने में अपना पूरा ध्यान लगायें | अगर आपको प्यास लगी है तो जाएं और पानी पीयें | सिर्फ पानी, पानी चिल्लाने या उसकी चिंता करने से आपकी प्यास नहीं बुझेगी | पानी को पाने के लिए सही प्रयास करें, उसे प्राप्त करें और पी कर अपनी प्यास बुझाएं | पर अगर आप सिर्फ उसका जुनून सर पर चढ़ा लें और चिंता ही करते रहें, उस तरफ कोई कदम उठाए बिना तो आप निश्चित रूप से सफल नहीं होंगे | इस तरह कोई सही महत्वाकांक्षा भी सफल नहीं होगी | इसलिए सही महत्वाकांक्षा रखें और उसे पाने के लिए दृढ़ता से प्रयास करते रहें |
यह सब हो तो अच्छा है, इन से परेशान न हों | इसके पीछे का कारण समझें | यह इस साधना विधि के कारण होता है | आप देखेंगे कि जब तक आपका मन सांस पर केन्द्रित है उसमें आसक्ति या द्वेष उत्पन्न नहीं होता | जैसे ही मन शुद्ध होता है वैसे ही मन में जमा विकारों के ढेर में विस्फोट जैसी प्रतिक्रिया होती है, जो शारीरिक असुविधाओं के रूप में प्रकट होती है | एक उदहारण से समझें | कोयला जल रहा है और हम थोडा पानी उस पर छिड़कते हैं तो क्या होता है ? पानी ठंडा है और कोयला गरम | जब ठंडा पानी गरम कोयले को छूता है तो जोर से छूं की आवाज आती है | यह तभी होता है जब दो विपरीत गुणधर्म वाले घटक मिलते हैं | इस तरह अगर हम गरम कोयले पर ठंडा पानी छिड़कते रहें तो हर बार छूं छूं की आवाज होती रहेगी जो धीरे धीरे कम होती जाएगी और रुक जाएगी जब दोनों का तापमान समान हो जायेगा | इसी तरह जब मन एकाग्र हो जाता है तो शुध्द होता है और इन असुविधाओं से छुटकारा होने लगता है | ऐसे शुद्ध क्षण हमारे अन्दर जलते विकारों की आग के लिए ठन्डे पानी सा काम करते हैं | इन के स्पर्श से ही इन सभी शारीरिक असुविधाओं, जैसे कि व्याकुलता, सर दर्द, पीठ दर्द, जी मिचलाना, पैर का दर्द आदि का आरम्भ होता है | इससे व्याकुल या निराश न हों | धीरे-धीरे ये गायब हो जाएंगे | जिस तरह पानी छीटते रहने से गरम कोयला भी ठंडा हो जाता है, उसी तरह यह असुविधाएं भी समाप्त हो जाएंगी | आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा तो व्याकुल न हों |
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