ध्यान की शिक्षा के बारे में

श्री.  एस. एन. गोयन्का जी और उनकी पत्नी इलइची देवीश्री. एस. एन. गोयन्का जी और उनकी पत्नी इलइची देवी प्रसिद्ध और सम्मानित शिक्षक हैं | विपश्यना की प्राचीन भारतीय तकनीक की उनकी प्रस्तुति को जिसमें स्व-अवलोकन द्वारा अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है, एक सरल, गैर-सांप्रदायिक और सार्वभौमिक विधि के रूप में दुनिया भर में आसानी से स्वीकार किया गया है | आचार्यों के सम्बन्ध में अधिक जानकारी जिस परंपरा से शिक्षा आयी है उस के बारे में अधिक जानकारी नीचे दी गई है |

श्री गोयन्का जी ने १९६९ में यह विद्या सिखानी शुरू की थी | यह तकनीक अब विश्व के हर महाद्वीप में फैल गयी है और एक सौ से अधिक विपश्यना ध्यान केंद्र चल रहे हैं | सभी केंद्र स्वतंत्र रूप से स्वयंसेवकों द्वारा चलाए जाते हैं और शिविरों का खर्च पिछले छात्रों के दान द्वारा पूरा किया जाता है | ८०० से अधिक सहायक आचार्यों को १० दिन और लंबे शिविरों में वयस्कों को सिखाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है और हर साल १६०० से अधिक ऐसे शिविर होते हैं |

१९८६ में श्री गोयन्का द्वारा छोटे १ से ३ दिवसीय शिविरों की रचना की गयी थी ताकि बच्चों को इस तकनीक के प्रारंभिक कदम की शिक्षा मिल सके | उन्होंने बाल शिविर के शिक्षकों को एक विधिवत ढांचा बनाकर उसका इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया, जो बाद में स्कूलों, शिविरों, रिमांड घरों और विकलांगों और बेघर बच्चों की संस्थाओं में प्रशिक्षण देंगे |

सन २००० में उन्होंने अंग्रेजी में एक दिवसीय शिविर के निर्देश अभिलिखित किए और प्रत्येक देश में एक या अधिक क्षेत्रीय समन्वयक नियुक्त किये ताकि नए शिक्षकों को पर्यवेक्षण और मार्गदर्शन प्रदान किया जा सके | बच्चों के लिए ६०० से अधिक बाल शिविर शिक्षक हैं | वे सभी और स्वयंसेवक, जो उनकी सहायता करते हैं, स्वयं ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं | ये युवाओं की मदद करने में रूचि रखते हैं और नि:शुल्क काम करते हैं | स्वयंसेवकों के चयन में सावधानी ली जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे जिम्मेदारी के लिए उचित हैं | हर साल दुनिया भर के बच्चों के लिए १००० से अधिक शिविर होते हैं |

शिविर तिथियाँ भाग देखें |

क्या यह एक धर्म है?

यह तकनीक गैर-सांप्रदायिक प्रारूप में प्रस्तुत की गई है | नैतिक व्यवहार जो इस तकनीक का आधार है, वह सभी धर्मों के लिए समान है| सभी धार्मिक पृष्ठभूमियों के लोग, और कोई भी, बिना किसी रूपांतरण के इस में भाग ले सकते हैं | यह शिविर, पाठशालाओं में प्रचारित मूल्यों के साथ अच्छी तरह मेल खाता है, चाहे वे धर्मनिरपेक्ष हों या धार्मिक आधार पर हों |

श्री. गोयन्का

श्री.  एस. एन. गोयन्का

श्री. एस. एन. गोयन्का जी १९२४ में मांडले में बर्मा (अब म्यांमार) में एक हिंदू व्यापारिक परिवार में पैदा हुए और उनका २०१३ में स्वर्गवास हो गया |

एक युवा के रूप में उन्होंने अध्ययन में उत्कृष्टता प्राप्त की | १६ साल की उम्र में वे रंगून यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेने वाले थे, लेकिन उन्हें पारिवारिक व्यवसाय के प्रबंधन में मुख्य भूमिका निभानी पड़ी, क्योंकि उनके पिताजी बहुत बीमार हो गए थे | गोयन्का जी ने जवानी में जल्दी शादी की जो उस ज़माने में आम रिवाज था | कम उम्र में वे व्यापार में इतने सफल रहे कि उन्हें शिक्षा, धर्म, सामाजिक गतिविधियों, साहित्य और कला से सम्बंधित सामुदायिक संगठनों में एक प्रमुख भूमिका दी जाने लगी |

उस समय वे माइग्रेन के सिरदर्द से बुरी तरह से पीड़ित थे | कई साल वे कई दिन रात सो नहीं पाते थे | सामान्य दर्द की दवाइयों से उन्हें कोई राहत नहीं मिली और कभी-कभी उन्हें मॉर्फिन का सहारा लेना पड़ता था | इस पृष्ठभूमि ने गोयन्काजी को आज के युवाओं के सामने आने वाले मानसिक दबावों की गहरी समझ दी |

उन्होंने दुनिया भर में व्यापार के लिए यात्रा की और इलाज के लिए यूरोप, अमेरिका और जापान में अच्छे डॉक्टरों की खोज शुरू की | लेकिन कोई भी इसमें उनकी मदद नहीं कर सका |

सौभाग्य से, वह सयाजी उ बा खिन के संपर्क में आये, जो महान प्रतिभाशाली, बुद्धिमान और समाज के प्रति समर्पित व्यक्ति थे | Sayagyi U Ba Khin of Burma

सयाजी बर्मी सरकार में एक वरिष्ठ अधिकारी थे और विपश्यना ध्यान के एक प्रमुख आचार्य थे, जिसकी शिक्षा कई दशकों से भिक्षुओं और आचार्यों की गुरु शिष्य परंपरा द्वारा प्रसारित होती आयी थी | गोयन्काजी पहले इस साधना के प्रति साशंक थे क्योंकि उन्हें यह "बौद्ध" परंपरा लग रही थी, लेकिन फिर उन्हें सयाजी ने आश्वस्त किया कि धर्म रूपांतरण की कोई आवश्यकता नहीं है | गोयन्काजी ने सयाजी के मार्गदर्शन में विपश्यना का अभ्यास करना शुरू कर दिया और बहुत ही शीघ्र वे माइग्रेन की पीड़ा से ही मुक्त नहीं हुए बल्कि उनकी संपत्ति की तुलना में कई गुना अधिक सुख और शांति उन्हें विपश्यना से मिली !

गोयन्काजी ने फिर चौदह वर्षों के लिए गहराई से अभ्यास किया, और साथ में वे अपने बढ़ते परिवार और व्यवसायिक जिम्मेदारियाँ भी निभा रहें थे | किसी चेतावनी के बिना, सरकार ने उनके सभी उद्योगों का अधिग्रहण किया और उनकी अधिकांश संपत्ति चली गई | १९६९ में वे अपनी बीमार मां की देखभाल करने के लिए भारत आए और उनके तथा १३ अन्य छात्रों के लिए एक शिविर आयोजित किया | उनका इरादा बर्मा लौटने का था, लेकिन अधिकाधिक लोगों ने ऐसे शिविरों का अनुरोध करना शुरू कर दिया जो जीवन के सभी क्षेत्रों और सभी धर्मों से थे | यह सार्वभौमिक गैर-सांप्रदायिक शिक्षा भारत के विविध समाज के लोगों को भा गयी, और अन्य राष्ट्रों के लोग भी जल्द ही आने शुरू हो गए |

श्रीमती गोयन्का (माताजी के रूप में उन्हें जाना जाता था) को भी सयाजी उ बा खिन ने प्रशिक्षित किया और विपश्यना आचार्य के रूप में अधिकृत किया | वे बाद में भारत में गोयन्काजी के साथ रहीं और १९७९ के बाद से उन्होंने विपश्यना सिखाने के लिए कई देशों की यात्रा भी की | २००० में गोयन्काजी ने दावोस, स्विट्जरलैंड में विश्व आर्थिक मंच को संबोधित किया | २००२ में एक दौरे के दौरान उन्हें विश्व शांति सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया | अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान के बावजूद गोयन्काजी ने हमेशा आचार्य के व्यक्तित्व की बजाय शिक्षा की प्रभावशीलता पर जोर दिया |

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पालक

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