ध्यान हमारी कैसे मदद करता है ?

प्रश्नोत्तर :


प्र. १. मन क्या है ?

प्र. २. मन को कैसे सुधारा जा सकता है ?

प्र. ३. आनापान साधना कैसे मदद करती है ?

प्र. ४. अपनी एकाग्रता कैसे बनाए रखें ?

प्र ५. शुद्ध सांस क्या है ?

प्र ६. स्वाभाविक सांस क्या है ?

प्र ७. शुद्ध सांस को ही क्यों देखें ?

प्र ८. निर्मल मन की क्या विशेषताएं हैं ?

प्र. १. मन क्या है ?

मन वो है जो सोचता है | मन हमारी मदद भी कर सकता है और नुक़सान भी पहुँचा सकता है | यदि मन का स्वभाव बुरा होगा, वह दूसरों के लिए बुरी भावनाएँ रखेगा | यदि हम प्रयत्न कर के मन को सुधारते हैं, हमारे विचार सुधरने लगते हैं | मन स्वयं और दूसरों के प्रति प्यार एवं मैत्री से भरने लगता है |

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प्र. २. मन को कैसे सुधारा जा सकता है ?

मन स्वयं को निर्मल बना सकता है | मन का एक हिस्सा ‘क्या हो रहा है’ उसे जानता रहता है | यह हिस्सा मनको सुधारने का काम कर सकता है | यदि वह ‘जो जैसा है उसे वैसा ही जानना सीख जाए’ तो वह जानेगा कि, जब मन में बुरे विचार एवं भाव आते हैं, मन व्याकुल हो जाता है | जैसे जैसे जानने वाला मन मज़बूत होता जायेगा, प्रतिक्रिया करने वाला भाग कमज़ोर होता चला जायेगा | मन निर्मल होता जायेगा एवं दुखों से छुटकारा होगा |

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प्र. ३. आनापान साधना कैसे मदद करती है ?

हम आती जाती सांस को निर्विचार रहकर जानते हैं | ज़्यादातर जब सुखद विचार आते हैं, मन में राग (चाहत) उत्पन्न होता है | जब बुरे विचार आते हैं, द्वेष उत्पन्न होता है | लेकिन जब हम शुद्ध सांस को जानते हैं, चाहे कुछ क्षणों के लिए ही सही, कोई नकारात्मकता मन को मैला नहीं करती | ये शुद्ध एवं निर्मल क्षण धीरे धीरे बढ़ने लगतें हैं और मन स्वच्छ होने लगता है | शुरू में यह काम ऊपरी स्तर पर होता है, मगर यह हमें विपश्यना ध्यान विधि के लिए तैयार करता है, जो जड़ों से मैल की सफाई करती है |

 

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प्र ४. जब मन विचारों से भरा हो तब कैसे अपनी एकाग्रता
बनाए रखें ?

इसीलिए तो ध्यान करना है | अगर मन ऐसे ही एकाग्र हो जाता है तो हमें ध्यान करने की ज़रूरत ही क्या है | मन इधर उधर भागता रहता है, यह उसकी आदत है, सभी तरह के विचार आते हैं, ज़्यादातर भूत अथवा भविष्य के | महत्वपूर्ण यह है कि ‘मन भाग गया है’ यह हमें जल्दी से जल्दी पता चल जाय | हमारा काम मन को वापस सांस की जानकारी पर लगाना है |

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प्र ५. शुद्ध सांस क्या है ?

शुद्ध सांस का मतलब है, केवल सांस | जहाँ कोई नाम या रूप (आकृति) सांस के साथ जुड़ा, वह अशुद्ध हो गई | आनापान ध्यान साधना में हम सिर्फ़ शुद्ध सांस पर काम करते हैं, बिना कुछ जोड़े |

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प्र ६. स्वाभाविक सांस क्या है ?

सांस का सहज रूप से चलना (आना और जाना) बिना कोई प्रयत्न किए | सांस छोटा, बड़ा, धीमें या तेज़ हो सकता है, मगर हम उसे बदलने की कोशिश नहीं करते | स्वाभाविक सांस जैसा आ रहा है, जा रहा है | हमारा काम सिर्फ़ उसे जानना मात्र है |

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प्र ७. शुद्ध सांस को ही क्यों देखें ?

क्योंकि हम अपने बारे में सच्चाई जानना चाहते हैं | सिर्फ़ शुद्ध सांस पर ध्यान लगा कर हम अनुभव करते हैं कि सांस का सिर्फ़ शरीर से ही नहीं, मन से भी गहरा संबंध है | सांस को जानते जानते हम अपने मन को जानने लगते हैं | जब मन में विचार उठने लगते हैं तो मन प्रतिक्रिया करने लगता है, जिससे सांस की गति बदल जाती है | जब हम विचलित अथवा ग़ुस्सा होते हैं, हमारी सांस तेज़ एवं ज़ोर से चलने लगती है | जैसे मन शान्त होने लगता है, सांस भी अपनी स्वाभाविक गति पर लौटने लगती है | जब हम सांस द्वारा मन को जानने लगते हैं, हम अपने अच्छे गुणों को मज़बूत करने की क्षमता विकसित कर पाते हैं |

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प्र ८. निर्मल मन की क्या विशेषताएं हैं ?

निर्मल मन सबके लिए प्यार, मैत्री एवं करूणा से भरा होता है, उसमें ग़ुस्सा, बैर, नफ़रत, लालच नहीं रहता | निर्मल मन से हमारे विचार एवं कर्म अच्छे तथा अपनी एवं दूसरों की मदद करने वाले हो जाते हैं |pure mind

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युवा

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